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मेरा होना साबित हो
तो दुश्मन की तरह
जो प्रतिरोध से रचता है अपना व्यक्तित्व
न कि भाट-चारण की तरह
मेरा होना साबित हो
तो मेज पर रखे पानी के कंपन की तरह
जो मेज के पूरे वजूद को थर्राता है
न कि पेपरवेट की तरह
मेरा होना साबित हो
तो उस स्त्री की तरह
जिसे सिर्फ मानचित्र में नहीं भूगोल में होना जंचता है
न कि नवउगनी कवियित्री की तरह
मेरा होना इस बात से तय हो कि
मेरे भीतर आदमीयत कितनी बची हुई है
न कि सब गुनाह माफ़ की तरह
मेरा होना साबित हो
तो दुश्मन की तरह
जो प्रतिरोध से रचता है अपना व्यक्तित्व
न कि भाट-चारण की तरह
मेरा होना साबित हो
तो मेज पर रखे पानी के कंपन की तरह
जो मेज के पूरे वजूद को थर्राता है
न कि पेपरवेट की तरह
मेरा होना साबित हो
तो उस स्त्री की तरह
जिसे सिर्फ मानचित्र में नहीं भूगोल में होना जंचता है
न कि नवउगनी कवियित्री की तरह
मेरा होना इस बात से तय हो कि
मेरे भीतर आदमीयत कितनी बची हुई है
न कि सब गुनाह माफ़ की तरह
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