मंगलवार, 30 सितंबर 2014

किसके सपनों के वारिस हैं मि. प्राइममिनिस्टर?



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 समस्त चित्र ‘इंडिया टुडे’ और ‘आउटलुक’ से साभार

‘केम छो मिस्टर प्राइम मिनिस्टर’: बराक ओबामा
‘थैंक यू वैरी मच मिस्टर प्रेसिडेंट’: नरेन्द्र मोदी
 

यह वार्तालाप अमेेरिका स्थित व्हाइट हाउस में उस समय घटित हुए जब अमेरिकी राष्ट्रपति इण्डियन प्राइम मिनिस्टर से मिले। बराक ओबामा ने गुजराती भाषा-टोन में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई और स्वागत जिस गर्मजोशी के साथ की; वह गौरतलब है। यह सही है कि यह संवाद जब दो देशों के प्रमुख जन-मानिन्दों के बीच हो रहे थे; पूरी दुनिया की मीडिया इस क्षण को अपने कैमरे अथवा मस्तिष्क में कैद कर लेने को आतुर, व्यग्र और बेचैन दिख रही थी। सीमित और दायरेबन्द विवेक-चेतना वाली भारतव्यापी मीडिया(विशेषतया अंग्रेजी नस्ल वाली हिंदी चैनल) की हैसियत-औकात इतनी नहीं है कि वह इस भाषिक-प्रयोजन का निहितार्थ-लक्ष्यार्थ समझ सके; और सही-सही विश्लेषण के माध्यम से अपनी देसी जनता को यह बतला सके कि आखिरकार कथित रूप से अमेरिका जैसे ढीठ एवं अड़ियल रूख वाले राष्ट्राध्यक्ष को यह क्योंकर सूझी कि वह गुजराती में पूछे-‘कैसे हैं माननीय प्रधानमंत्री?’ और सवा अरब की आबादी वाले देश का प्रतिनिधित्वकर्ता प्राइम मिनिस्टर अपनी मूल ज़बान तो छोड़िए अपनी  उस करिश्माई वक्तृता की भाषा में भी जवाब न दे सके-‘मैं बिल्कुल चंगा, दुरुस्त और स्वस्थ हूँ माननीय राष्ट्रपति।’

‘मेक इन इंडिया’ के सर्जक-धर्जक क्या इस घटना पर अपनी कान देंगे? क्या वह यह मानेंगे कि यह अमेरिकी मनोव्यवहार, मनोभाषिकी और नीतिगत संचार शैली का कुटनीतिक हिस्सा है? यही अमेरिकी समाज के नेताओं का वास्तविक चारित्रिक-वैशिष्ट्य और अहंभाव है?  क्या भारीय राजनीतिक विश्लेषक-राजनयिक और उच्च पदस्थ आला अधिकारीगण यह समझ पाने की स्थिति में हैं कि अमेरिकी निगाह में अपनी सर्वश्रेष्ठता को हर हाल में प्रदर्शित कर ले जाना ही उसकी अपनी खूबी-खाशियत है? क्या इण्डियन एडवाइजर/मैनेजर/काउंसलर/टेक्नोक्रेट/ब्यूरोक्रेट/कारपेट/काॅरपोरेट आदि के नामचीन शेखों को इसका तनिक भी अंदाज था कि जिस प्राइम मिनिस्टर ने मैडिसन स्कावयर में एक दिन पहले बोलते हुए वहाँ मौजूद हजारों मूल भारतवंशी अमेरिकियों को अभिभूत कर दिया था; वह महान शख़्सियत जब अमेरिकी राष्ट्रपति के समक्ष प्रकट होगा तो वह अपनी उस वाक्पटुता, वाक्कौशल अथवा अंदाजे-बयां को भी प्रत्युत्तर रूप में शामिल कर पाने में असमर्थ सिद्ध होगा। याद कीजिए इस मोड़ पर महात्मा गांधी होते तो दृश्य और स्थिति क्या होती?

(राजीव रंजन प्रसाद लिखित आलेख ‘किसके सपनों के वारिस हैं मि. प्राइममिनिस्टर?’ से)

नोट: लेखक बीएचयू में भारतीय युवा राजनीतिज्ञों के संचार विषयक मनोव्यवहार एवं मनोभाषिकी पर शोधकार्य कर रहे हैं।

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